मुंबई/एजेंसी।- वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि पुराने कानून कॉरपोरेट जगत में दिवाला और दिवालियापन की समस्या से निपटने में आंशिक रूप से प्रभावी हैं, इसलिए अभी इस मुद्दे से निपटने के लिए वर्तमान तंत्र के प्रभावशीलता को आंकना होगा।
जेटली ने कहा कि इससे पहले, यदि कंपनियां दिवालिया होना चाहती थीं तो उनके मामले अनिश्चित काल के लिए अदालतों में फंस जाते थे। एसआईसीए ने देनदारों के खिलाफ केवल लोहे का परदा प्रदान किया था, अन्यथा यह एक पूर्ण विफलता थी और जिस उद्देश्य के लिए इसका गठन किया गया था, उसका बहुत कम उद्देश्य ही हासिल किया जा सका।
ऋण रिकवरी ट्राइब्यूनल (डीआरटी) कुछ हद तक तेज था, लेकिन अनुमानित रूप से प्रभावी नहीं था, जबकि सिक इंडस्ट्रियल कंपनीज एक्ट (एसआईसीए) विफल रहा था और वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम (एसएआरएफईएसआई) के लागू करने से केवल सीमित उद्देश्य ही पूरा हुआ। इस मुद्दे को फिलहाल दिवालिया और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) देख रही है।
जेटली ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कंपनियों द्वारा दिवालियापन से निपटने के पिछले प्रयास थोड़े सफल रहे हैं, लेकिन अंतत: यह लेनदारों के लिए अभी भी कठिन है। वित्त मंत्री ने कहा कि दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 द्वारा शुरुआती नौ महीनों के दौरान प्राप्त किए गए अनुभवों और सामने आई चुनौतियों पर भी चर्चा की जाएगी जिन्हें दूर करने की जरूरत है।
फंसे कर्जें से निपटने के लिए मौजूदा तंत्र पर विचार जारी : वित्त मंत्री जेटली
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