नई दिल्ली/एजेंसी- देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई का मानना है कि जिन रुके हुए रिहायशी प्रॉजेक्ट्स के बिल्डरों से इनसॉल्वंसी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत लोन रिकवरी की कोशिश हो रही है, उसमें होम बायर्स और उन प्रॉजेक्ट्स के लिए कर्ज देने वाले बैंकों के साथ बराबरी का व्यवहार होना चाहिए। नारडेको के नैशनल रियल एस्टेट कन्वेंशन में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एमडी (एनबीजी) रजनीश कुमार ने कहा कि बैंकों और होम बायर्स, दोनों को बैंकरप्सी मामलों में लॉस उठाना होगा। कोई एक पार्टी सिर्फ घाटा नहीं उठा सकती। होम बायर्स और बैंकों के साथ इन मामलों में बराबरी का सलूक होना चाहिए। बैंकों को भी यह याद रखने की जरूरत है कि होम बायर्स के अधिकारों को खारिज नहीं किया जा सकता।
जेपी इन्फ्राटेक का केस एनसीएलटी में इनसॉल्वंसी कोड के तहत चल रहा है। इसमें होम बायर्स कंपनी के सिक्यॉर्ड लेंडर्स के बराबर के दर्जे की मांग कर रहे हैं। किसी रिहायशी रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट में आमतौर पर बिल्डर अपनी पूंजी लगाता है, जिसे इक्विटी माना जाता है। इसके अलावा, वह होम बायर्स से अडवांस और बैंकों से कर्ज लेकर प्रॉजेक्ट को पूरा करता है। यह लोन और अडवांस कैटिगरी के तहत आता है।
कुमार ने कहा कि रियल एस्टेट (रेग्युलेशन एंड डिवेलपमेंट) एक्ट, 2016 और इनसॉल्वंसी एंड बैंकरप्सी कोड के लागू होने से बैंकों का रिस्क कम हुआ है और इससे उनके लिए सस्ता कर्ज देना भी संभव हुआ है। उन्होंने बताया कि होम बायर्स को भी रेडी टू मूव इन अपार्टमेंट खरीदकर अपना रिस्क कम करना चाहिए। उन्हें अंडर-कंस्ट्रक्शन फ्लैट्स नहीं खरीदने चाहिए। कुमार ने कहा कि 2013 तक होम बायर्स के लिए बाजार अच्छा था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ वर्षों तक भी होम बायर्स के लिए रिस्क रिवॉर्ड रेशियो अच्छा नहीं रहने जा रहा है। कुमार ने सुझाव दिया कि अगर रेडी टू मूव इन फ्लैट्स मिल रहे हैं तो होम बायर्स को निर्माणाधीन फ्लैट्स खरीदने की क्या जरूरत है? अगर वो निवेशक नहीं हैं और किसी प्रॉजेक्ट की पड़ताल नहीं कर सकते तो उन्हें रेडी फ्लैट्स ही खरीदने चाहिए। कुमार ने कहा कि होम बायर्स के अलावा रियल एस्टेट सेक्टर के दूसरे स्टेकहोल्डर्स डिवेलपर और सरकार को भी कम रिटर्न की उम्मीद करनी चाहिए। उन्होंने इस संदर्भ में प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शंस पर स्टैंप ड्यूटी का जिक्र किया। कुमार ने बताया कि देश के कई इलाकों में अभी स्टैंप ड्यूटी 8 पर्सेंट के करीब है। उनके कहने का मतलब है कि रियल एस्टेट मार्केट की हालत को देखते हुए स्टैंप ड्यूटी को तार्किक बनाना चाहिए।
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