धुआं और धूप दोनों की तुलना करिए। क्या अच्छा है क्या बुरा। या कभी कोई अच्छा कभी कोई बुरा। चिंतन की चौखट पर समाधान मिलेगा। धुएं में काम करने से आंखों की रोशनी कम हो जाती है तब मानव अपनी निर्धारित पहुंच खो बैठता है। बीड़ी सिगरेट चिलम आदि का धुआं सेहत को मटियामेट कर देता है। इतना सब सामने होते हुए भी चेतना जिंदगी के दुर्लभ श्वासों का धुआं देखकर हर्षाए हैं ना आश्चर्य। कभी अगरबत्ती का धुआं प्रिय लगता है क्योंकि वो मन को महका देता है तन को ताजगी से भर लाता तो कभी गीली लकड़ी कण्डों का धुआं आंखों को पानी से भिगो देता है। विवेक रखिए, जिंदगी को कफन का धुआं लगे उससे पहले अगरबत्ती की तरह चिंतन, सद्गुणों की खुशबू से तर कर लें ताकि लकड़ी कंडे के खारे धुएं की तरह आंसुओं के सहारे घुट-घुट कर ना रहे और जब धूप के सहारे कोई मंगल कार्य किया जाता है तब चेहरों को नूर मन भावन पर नजर आता है। सर्दी की बर्फीली हवाएं अपना रूख बरसा रही होती है तो कभी जेठ-बैसाख की भरी दुपहरी में चिलचिलाती धूप मरूप्रदेश में राहगीर को बेहाल भी कर देती है। कठिनाई की धूप में स्वयं को संतुलन के साथ मांगलिक मिशाल की मिसाल बनाएं न कि तपती गर्मी की धूप की तरह बेहा करें।
-चिंतनशीला वसुमति जी मा.सा.
