विकास से नजदीकियां बनानी होती है। विकास वो सुई है जो दो को एक कर देती है। विवेक से ही विकास होता है। जैसे पानी पर लिखा नहीं जाता, वैसे ही विकास शर्तों पर नहीं किया जाता। शीशा व रिश्ता गलतफहमी से टूटता है, जबकि विकास गलत निर्णय से। विकास खुद को साबित करने के लिये भी किया जाता है। विकास करना भी कोई आसान चीज नहीं है। देश में विकास के लिये पंूजी की जरुरत होती है। विकासशील एवं नियोजित अर्थव्यवस्था में कराधान के उद्देश्यों से शासन प्रबंधन बनाया जाता है। विकास कार्यों के लिये व्यय की आवश्यकता होती है। व्यय के लिये पंूजी का निर्माण होता है। नई पंूजीगत वस्तुओं में विनियोग को प्रोत्साहन दिया जाता है। सत्ता के केन्द्रीकरण (आर्थिक) एवं एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश रखा जाता है। बचत व पंूजी निर्माण पर अधिकतम जोर होता है। सरकार कर प्रणाली व कर नीतिगत उद्देश्यों की स्थापना करती है। जहां वो धन एकत्र करती है, आर्थिक विकास की गति को तीव्र बनाती है। आय व धन के वितरण की असमानता को भी दूर करती है। क्रय शक्ति का भी सुचारु नियमन मुद्रा प्रसार के प्रभावों को देखते हुए कर नीति माध्यमों का प्रयोग करती है। क्रयशक्ति से ही लोगों का जीवन संपन्न व प्रभावित होता है। सरकार हानिकारक व अलाभप्रद वस्तुओं के उत्पादन उपभोग पर भी नियमन नियंत्रण करती है। धन का विधिवत नियमन करती है।
मोदी इसीलिये भारत का नवनिर्माण कर रहे हैं। जहां विकास चलता है खुद को साबित करने के लिये। देर लगी आने में विकास को, शुक्र है मोदी लाए तो, आस ने छोड़ा नहीं साथ, वरना सब घबराए से थे। मोदी नई दृष्टि, नए संस्कार, नई संस्कृति, नया विज्ञान ला रहे हैं जहां भारत २०२२ तक नव निर्मित हो जायेगा। विकास से ही देश के युवाओं में एक नई ऊर्जा, उमंग, उत्साह बनता है। देश में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा है इसीलिये मोदी युवाओं को तरजीह दे रहे हैं जो नया भारत बना सकेंगे। अब समय आ गया है कि युवा भी उत्साह बनाये रखें व विलास सुख सदैव त्यागें। मोदी वाकई कुछ नया कर रहे हैं इसमें दोहराय नहीं। कोई विकास मूल्य ना छूटे इसीलिये मोदी नए की खोज से नवीनता ला रहे हैं। नवीनता को सांस में लाए ना कि विलासिता में, वरना नया भी महंगा पड़ जाता है। श्रीराम के भारतवर्ष की आबादी आज एक अरब से ज्यादा की हो गई है तथा आबादी में ठहराव नजर नहीं आ रहा। देश में विकास, विज्ञान प्रगति भी हो रही है। मोदी विकास को गति दे रहे हैं, लेकिन विकास बिना रोजगार सृजन के आगे कैसे बढ़ेगा, जहां राजनीति बतौर प्रशासन भी जोरों पर है। सभी अपने-अपने जुगाड़ों में मस्त हैं। इस प्रजातंत्र में तो ईमानदारी का ही टोटा पड़ रहा है। राजनति की अति आलमता से ही भ्रष्टाचार जोर पकड़ता है। देश-प्रदेश में कई ऐसे पंूजी क्षेत्र के दिग्गज हैं जो भ्रष्टाचार के जरिये ही पनप रहे हैं। आये दिन घोटालों की परतें मोदी खोल रहे हैं। प्रशासनिक कार्यों में पारदर्शिता का अभाव तो है ही मगर विवेक कौशलसील समझदार विद्धानों की कमी आज भी दिखती है। उपक्रमों, शिक्षा में, ब्यूरोक्रेसी में हर जगह प्रबंध संचालन है, फिर भी उपक्रम घाटे में रहते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में लाभ क्यों नहीं आ सकता। क्या लाभ सिर्फ निजी क्षेत्र में ही आता है। घोटालों, भ्रष्टाचारों से स्पष्ट दिखाई देता है कि कैसे देश कमजोर किया जा रहा है। यही नहीं सुरक्षा स्तर में भी कमजोरियां हैं। आंकड़ों के अनुसार सवा लाख पर ११३ पुलिसकर्मी ही हैं। सेना की दक्षता में भी कमी है कि अभी भी कश्मीर में हिंसाएं नहीं रुक पाती है। आज जनता में भी प्रशासन कानून के डर की कमी है। लोग बैंकों में ही लूटपात-चोरी कर जाते हैं, ये ही नहीं मंदिरों तक में ही चोरियां हो जाती है। देश में जब से ठेका प्रथा पनपी है तो भ्रष्टाचार भी बढ़ा ही है ना कि कम हुआ है। देश में आज भी कैश भुगतान पर दो परसेंट की छिज्जत चल रही है।
विरोधियों का भी यहीं आलम सदैव रहा है जहां हमें महाभारत में द्रौपदी जो अग्नि पुत्री-पवित्रता थी, पर दोष लगाया गया, राम राज्य में धोबी ने सीताजी पर ऊंगली उठाई। ये सब क्या है। क्या आज भी सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा। आजकल तो बहुत ज्यादा ही दुष्कर्म भी दिखाई देने लगे हैं। लेखक को नहीं लगता कि भ्रष्टाचार समूल समाप्त हो जायेगा। एक प्रसंग था कि दो भाई नित्य मंदिर जाते थे। एक दिन आंधी तूफान ऐसा तेज आया कि एक भाई नहीं जा पाया। पुजारी ने कहा कि तुम तो आज भी मंदिर आना नहीं भूले क्या बात है। वो बोला कि मैने मन्नत मांगी है कि मुझे मकान चाहिये। मैं चाहता हंू कि ये मेरे उस भाई के हाथ में ना आ जाये। पिताजी इसे मेरे नाम कर दे। ऐसे में आप स्वयं मंथन करें कि हालात क्या व कैसे है। पंूजी पाने की होड़ में ऐसे भ्रष्टाचार क्यों नहीं पनपेगा। आज सत्यता-ईमानदारी को जानने की जरुरत के साथ उसके क्रियान्वयन की ईमानदारी की है। आजकल तो जन कल्याण के कार्यक्रमों में भी बिचौलिये कहां कैसे पैसा रखा जाये पता नहीं चलता। आये दिन छापे पड़ते हैं, अनाफ सनाफ रकमें मिलती हैं, परंतु स्थितियों-परिस्थतियों में सुधार नहीं आ पा रहा है। अभी भी वहीं ढाक के तीन पात। मोदी द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम छेड़ी गई है जो एक अच्छी शुरुआत है। यहीं से विकास चलता है खुद को साबित करने के लिये।
