सप्ताह में हर दिन 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य लगभग हासिल हो चुका है, क्योंकि शहरी इलाकों में तकरीबन 23.5 घंटे बिजली की आपूर्ति की जा रही है, जबकि ग्रामीण इलाकों में लगभग 22 घंटे बिजली दी जा रही है।
लेकिन देश के कुछ हिस्सों में साल के अधिकांश समय रोजाना दो घंटे से भी अधिक समय तक बिजली कटौती होती है। इस अंतर को पाटना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसे केवल तकनीकी तरीके से हल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जिन बदलावों की आवश्यकता है उनके लिए नीति निर्माताओं को अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा।
यकीनन दिक्कत उत्पादन क्षमता की नहीं है। 2022-23 में देश का कुल बिजली उत्पादन करीब नौ फीसदी बढ़ा। कागज पर देश की क्षमता तेजी से बढ़ती मांग के साथ तालमेल में है। दिक्कत दो स्तरों पर है, अहम समय पर जिसमें गर्मियां शामिल हैं, बिजली उत्पादन के कुछ प्रकार ग्रिड से बाहर हो जाते हैं और अन्य में कच्चे माल की कमी देखने को मिलती है। इससे पूरे देश में व्यापक कमी की स्थिति बन जाती है। इसमें सतत बनी रहने वाली मध्यस्थता के काम की समस्या को भी जोड़ा जाना चाहिए।
यह सही है कि उत्पादन पर्याप्त है तथा देश के अधिकांश हिस्सों में वितरण पहुंच चुका है लेकिन वितरण कंपनियां तथा राज्य बिजली बोर्ड दोनों सिरों के बीच मध्यस्थ का काम नहीं कर पा रहे हैं। देश के अधिकांश हिस्सों में जहां अंतिम सिरे तक दिन रात बिजली पहुंचाने के सरकार के लक्ष्य के लिए काम करने की जरूरत है, वह भी कर्ज से जूझ रही अथवा गैर किफायती बिजली वितरण कंपनी के हवाले है।
इसमें दो राय नहीं कि सरकार ऐसा ढांचा तैयार करने का प्रयास कर रही है जो उन्हें ऐसी दिक्कतों से निपटने में मदद करेगा। ऐसा ही एक हल हैं स्मार्ट मीटर। यह भी वितरण क्षेत्र में सुधार की योजना का हिस्सा है। इसके तहत ऐसी व्यवस्था बन सकती है जिससे वितरण कंपनियां भुगतान करने वाले ग्राहकों पर ध्यान दें। इसके साथ ही इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मूल्य संबंधी नीति को सही करना होगा। लगातार घाटे के कारण बिजली वितरण कंपनियों के लिए जरूरी निवेश करना मुश्किल हो रहा है। अक्षय की ओर बढऩे के बीच इस बदलाव तथा बिजली की अबाध आपूर्ति के लिए निवेश आवश्यक होगा।
