पीएम मोदी ने बतौर मुखिया रास्ता दिखाया विकास का देश को जब हम अपना रास्ता खो रहे थे। भ्रष्टाचार भी दुंदुभी से देश पीछे हो गया। अब जबकि मोदी विकास की राह पर है तो देश में रिसर्च व इनोवेशन की शिक्षा में भारी कमी देखी जा रही है। शिक्षा पर माना कि सरकार जोर दे रही है, परंतु कई बार लगता है, शिक्षा भी एक फैक्ट्री दुकान हो गई है जहां शिक्षा बांटी जा रही है। देश में जरुरी है कि सरकार इनोवेशंस के लिये विज्ञान व तकनीकी शिक्षा हेतु शोध कार्यो में निवेश करे। वरना हम फिर किनारे पर ही रहेंगे। शिक्षा हेतु केन्द्रों से डिग्रियां बांटी जा रही है जहां विद्यार्थियों को कहा जाता है कि जाओ मार्केट रेडी है। देश की तरक्की तभी संभव है जब शिक्षा अधिकांश हो। बिना रिसर्च के इनोवेशन संभव नहीं। आज भी भारत शिक्षा की पायदान पर दुनिया में पीछे है। हमारे शिक्षण केन्द्र भी अच्छा होने के लिये किनारों पर ही है। चीन अपने डीआरडीओ पर जीडीपी का २५ फीसदी निवेश रिसर्च पर करता है। अमेरिका तो चीन से भी आगे है। रिसर्च का प्रश्न आता है तो पता चलता है कि हमारे आईआईटीज भी शोध कार्यों में पीछे हैं। दुनिया में इंटलैक्चुअल प्रोपर्टी और गेनाईजेशन के मुताबिक भारत के २०१५ तक ४५६५८ पेटेंट्स हैं। भारत जीडीपी का एक फीसदी भी इनोवेशन रिसर्च पर पूरा खर्च नहीं करता। मोदी सरकार को यहां जागृति लानी होगी। यदि किनारों से दरिया पार करना है तो। ईकोनोमी ग्रोथ डवलप करनी है तो बेहद जरुरी है कि हम भी विज्ञान, आर्थिक, तकनीकी क्षेत्र में भारी शोध को बढ़ावा दें। बिना इसके हम कब तक रहेंगे किनारे पर। ईकोनोगी ग्रोथ में उम्र, जेंडर कहीं आड़े नहीं आती। देश में शिक्षा व नौकरियों में सब जगह ज्यादातर शिक्षा-शोध में हमने आयु सीमितता का प्रावधान कर रखा हैं, अत: ऐसे में शोध कार्यो पर असर आता है। इसके अतिरिक्त शोध कार्यो में निवेश खर्च कमतर का है। संसाधनों तथा खर्च राशि पेमेन्ट्स भी उच्च स्तर के नहीं हैं। शोध करने वाले भी टाईम पीरियड बाद बेरोजगारी की कतार में आ जाते हैं। देश में कई जगह पारदर्शिता, बजटों के अभाव में किनारों पर ही चलते रहते हैं। राशि, पेमेन्ट्स का सदा अभाव का ही अंकन रहता है। सरकार के पास भी उच्च कौशल का अभाव देखा जाता है जहां कौशल निपुण, उच्च कौशल के लोग नहीं मिल पाते। यहां शिक्षा में कमी है। घोटाले, भ्रष्टाचार होने का कारण मुख्यमा ये भी है कि कार्यों की उत्पादकता में पारदर्शिता का अभाव है। उम्र अनुभव की कवायदों से ही ज्यादा कार्य देखा जाता है। ऐसे में कौशल भी कैसे पनपे। शोध ही नहीं होगी तो इनोवेशन कैसे होगा। चीन ने हाल ही शोध से पहले हाइपरसोनिक विमान का सफल परीक्षण किया है जो कि अत्याधुनिक तकनीक से लैस है। जो एंटी मिसाईल विरोधी रक्षा प्रणालियों में भी प्रवेश कर सकता है। इसे वेवराईडर भी कहा जा रहा है। चीन का रक्षा बजट इस साल १७५ अरब डॉलर का है। वो रुस, अमेरिका से बराबरी कर रहा है और डिफेंस डवलपमेंट तेजी से कर रहा है। मोदी सरकार के आने के बाद से ही भारत में अब प्रतिस्पद्र्धा भाव जागृति हुआ है, जहां मोदी देश को चीन की भांति विकसित करना चाहते हैं। ऐसे में ये जरुरी है कि सरकार सीधी भर्ती की रोजगार योजनाएं चलाए और शोध कार्यों को बढ़ावा दें। कुल मिलाकर ये भी सोचा जाता है कि हम कब तक किनारे पर रहेंगे, क्योंकि हमारे पास पंूजी निर्माण व निवेश का भारी अभाव है। कौशल में भी अकुशलता आती रहती है। मोदी सरकार वैसे लगी है कालाधन के पता लगाने में। भारतीयों को समय के बदले पैसे से ज्यादा स्नेह होता है। सरकार ने ८४४८ करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगाया है। आजकल यहां के लोग भारत के बाहर ही पैसा ले जा रहे हैं। मोदी के कालाधन कानून बनाने के बाद से १५३२.८८ करोड़ रुपये के अघोषित विदेशी निवेश को भी पकड़ा गया है। नोटबंदी के बाद २ लाख लोगों ने ६४१६ करोड़ रुपये का टैक्स दिया है। रिटर्न फाईल करने वालों की संख्या भी ५० फीसदी बढ़ी है। वर्तमान में उच्च कौशल प्राप्ति वास्ते अधिकतम शिक्षा व शोध की जरुरत आन पड़ी है। आर्थिक कौशल में भी रिसर्च की आवश्यकता है। सरकार जब तक इनोवेशन के लिये शोध कार्यों को नहीं बढ़ाएगी और ज्यादा से ज्यादा रोजगार मुहैया नहीं कराएगी तब तक हम पिछले की पायदान पर ही रहेंगे, जो हमारे विकास को रोकेगा।
सुरेश व्यास
आर्थिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
हम कब तक रहेंगे किनारे पर
205
previous post