गाजा में गत वर्ष 7 अक्टूबर को हमास-इजरायल संघर्ष शुरू होने के बाद पश्चिम एशिया में बढ़ता विवाद वैश्विक स्थिरता और वृद्धि की निरंतरता के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है। ईरान और पाकिस्तान द्वारा एक-दूसरे के क्षेत्र में मिसाइल हमलों ने शत्रुता बढ़ा दी है। इस लड़ाई में ईरान की बढ़ती भूमिका ने गाजा युद्ध की छाप को इराक, सीरिया, लेबनान और पाकिस्तान तक विस्तारित कर दिया है।
इस माह के आरंभ में ईरान-समर्थित इजरायल विरोधी यमन के हूती विद्रोहियों ने विश्व व्यापार को अस्थिर कर दिया। उन्होंने यूरोप-दक्षिण पूर्व एशिया के समुद्री मार्ग पर अप्रत्याशित हमले किए। वैश्विक व्यापार का 12 फीसदी इसी मार्ग से होता है। हमलों की वजह से नौवहन कंपनियों को अपने पोतों को लंबे रास्ते से भेजना पड़ रहा है जिससे एक महीने से भी कम समय में उनकी लागत दोगुनी से अधिक बढ़ गई है।
सप्ताहांत के दौरान इजरायल ने दमिश्क पर मिसाइल हमला किया जिसमें तीन ईरानी रिवॉल्युशनरी गार्ड्स की जान चली गई, लेबनान में स्थित और ईरान समर्थित संगठन हिजबुल्लाह पर हुए हमले में भी एक व्यक्ति की जान चली गई। हाल ही इराक में ईरान समर्थित समूहों ने एक अमेरिकी एयर बेस पर मिसाइल और रॉकेट हमले किए जिसमें कई अमेरिकी घायल हो गए। कुछ गंभीर रूप से घायल हुए। संक्षेप में कहें तो इस क्षेत्र में खतरा ब? रहा है।
समस्या के मूल में इस संघर्ष के प्रमुख कारकों की हठधर्मिता जिम्मेदार है। अक्टूबर में हमास के हमले के बाद गाजा में इजरायल ने जो प्रतिकार किया उसके शिकार आम नागरिक भी हुए। इस बात की संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया भर में आलोचना भी हुई। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का दक्षिणपंथी गठबंधन राजनीतिक रूप से कमजोर है जिससे वह अधिक चरमपंथी तत्वों के समक्ष और कमजोर हुए हैं।
उनका अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि गाजा में स्थिति को कैसे संभाला जाता है। उनकी बढ़त दरअसल इस तथ्य में निहित है कि अमेरिका के लिए एक शक्तिशाली और धनी घरेलू लॉबी के दबाव में अपने सहयोगी को रक्षा और रसद समर्थन वापस लेना राजनीतिक रूप से असुविधाजनक है।
बीते वर्ष के दौरान लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन देखने वाले ईरान के सत्ताधारी वर्ग के लिए भी इजरायल और अमेरिका के साथ लड़ाई कम करने की कोई वजह नहीं है। अमेरिका ने डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ईरान के साथ नाभिकीय समझौता रद्द कर दिया था।
इस तेजी से बदलती स्थिति में भारत ने पारंपरिक कूटनीतिक रुख कायम रखा। पाकिस्तान के बलूच इलाके में जैश अल अदल नामक आतंकी समूह के ठिकानों पर ईरान के मिसाइल हमले की आतंकवाद से आत्मरक्षा के रूप में उठाए गए कदम मानने की आधिकारिक प्रतिक्रिक्रया भारत के आतंकवाद के खिलाफ रुख का ही समर्थन है। परंतु वैश्विक नौवहन के समक्ष उत्पन्न खतरे को अभी समाप्त किया जाना है।
