दुनिया में इन दिनों उत्तरी गोलाद्र्ध में आग से कई जगह तबाही मची हुई है। केलिफोर्निया के जंगलों में १८ जगह आग लगी हुई है, वो भी भयावह। जापान के टोक्यो में तापमान ४० डिग्री से ऊपर रहने लगा है। मौसम परिवर्तनों से हर जगह लगता है तापमान बढ़ता जा रहा है। हर जगह औद्योगिक क्रांति बाद से एक डिग्री तापमान वृद्धि से धरती गर्म हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग से अभी तो गर्माहट कम की दिख रही है, उसी में दुनिया गर्म होने लगी है। ये सब दुनिया में गैसों के उत्सर्जन से हो रहा है। फिर भी दुनिया कालीदास की तरह ही पर्यावरण में एक्ट कर रही है। अक्षय ऊर्जा क्षेत्रों में सब्सिडियां घटने लगी हैं। निवेश थम सा रहा है। दुनिया में पेरिस जलवायु सम्मेलन में तापमान नीचे लाने की शपथ तो ले ली मगर क्रियान्वयन में फिसड्डी चल रहे हैं। अस्थाई भटके पर्यावरण के झेलने के बाद भी मानव जाति संभल नहीं रही है। पर्यावरण व प्रकृति से युद्ध हम हार रहे हैं। वैसे देखा जाये तो मोदीजी जरुर सजग हैं। वे सोलर पैनल, विंड टर्बाइन, लोकार्बन सस्ती तकनीकें उपयोग में लाकर एक कारगरता ला रहे हैं। आगे कारें भी इलेक्ट्रिक की आ रही हैं। भारत में धुंध-कोहरा, धुंआ बढऩे लगा है। धरती को कार्बन मुक्त करना है। जीवाश्म इंधन को मौजूदा ग्रिड से जोड़ा जा सकता है। भारत में कोयले से ८० फीसदी बिजली पैदा की जाती है। रेलवे में भी मोदी बिजली की तेजी ला रहे हैं। अभी लगभग दुनिया के ७० देश कार्बन पर कीमत लगाने लगे हैं। ग्रिड, तकनीक, स्टील, सीमेन्ट में कार्बन कम किया जा रहा है। सोलर जियो इंजीनियरिंग पर शोध जारी है। पश्चिम देश पनपे की कार्बन आधारित औद्योगिक विकास से। गरीब देश इस दिशा में पेरिस समझौते से लाभांवित हो सकते हैं यदि दुनिया समझौते का सही रुप से तेजी से पालना करे तो। दुनिया को तपने से बचाने के लिये उत्सर्जन कम करना होगा। कार्बन कैसे बाहर हो, ध्यानाकर्षण की जरुरत है। मात्र औद्योगिक स्वार्थ का संरक्षण इसे कारगार नहीं कर सकता। चीन ने हाल ही १० लाख से ज्यादा कारें बिजली की बनाई हैं, जो भी बिजली की ग्रिड से ऊर्जा पाती हैं। लेकिन यहां ग्रिड भी दो तिहाई बिजली कोयले से ही प्राप्त कर रहा है। यहां भी सीओटू (कार्बनडाई ऑक्साईड) पैदा हो रही है।
भारत में मोदी चाह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन को उलटने में थोड़े समय के लिये आर्थिक लागत आएगी, परंतु कार्बन दूर होने से अर्थव्यवस्था बाद में और अधिक समृद्ध हो पाएगी। कमजोर या गरीब लोगों पर मार कमतर पड़े ध्यान करना होगा। लेकिन अभी तो दुख यही है कि दुनिया पहले बहुत अधिक गर्म होगी। अच्छी जिंदगी के लिये अपनी ही लौ लगानी पड़ेगी।
दुनिया को गर्म होने से बचाना जरुरी है। खिजां के बाद ही रंगे चमन निखारना है जो बुरा भी नहीं है। बड़े-बड़े शहरों में भारी प्रदूषण है और तेजी से बढ़ रहा है। जैसे राजस्थान प्रदेश जहां बारिश होने के समय में भी जयपुर व जोधपुर में ही भारी प्रदूषण हैं। यहां हवा ही जहरीली होती जा रही है। सांसों में घुलकर ये हवा लोगों के फेफड़े खराब कर रही है। लोगों को ज्यादा एलर्जी हो रही है।
अलवर, कोटा, पाली, भिवाड़ी में सांस लेना प्रदूषण रहित नहीं है। मुंबई, बैंगलोर भी अछूते नहीं है। लोग सुबह, शाम घूमने जाते हैं जहां प्रात: ६ से ८ तथा शाम ४ से ६ बजे ते सबसे ज्यादा जहरीली हवा मिल रही है। हवा प्रदूषण से आंखे भी खराब हो रही है व एलर्जी रोगियों की संख्या बढ़ रही हैं। लगभग आधे जयपुर, जोधपुर शहरों में अधिकतम प्रदूषित-जहरीली हवा सर्वाधिक है। बैंगलोर, दिल्ली में भी यही हाल है। हां बैगलोर में जरुर १० फीसदी शहर में ही जहरीली हवा है। देश में हर जगह औद्योगिकीकरण लाइसेंसिग के समय से ही प्रदूषण रहितता की क्लीयरेंस लेनी होती है। तदनुपरांत भी कार्बन उत्सर्जन बाबत अनियमितताएं होती रहती है।
ये सब प्रदूषण विभाग की नाक के नीचे होते हुए भी जानकर अनजान कर दिया जाता है। जनहित सुरक्षा की दृष्टि से भी कार्यों की अनदेखी जारी रहती है। कई बार सरकारें ऐसे कानून बना देती हैं, अधि सूचनाएं जारी करके भी जहां जनहित की जगह जनअहित का कानून बना लिया जाता है। जिसका हरेक को ज्ञान नहीं होता।
सुरेश व्यास
आर्थिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार
