नई दिल्ली। रेरा के गठन और अदालती सख्ती के बावजूद लंबित हाउसिंग प्रॉजेक्ट पूरा कराने में बहुत तेजी नहीं आ सकी है। देशभर में फिलहाल करीब 5.6 लाख हाउसिंग यूनिटें लॉन्च होने के पांच साल या इससे ज्यादा समय बाद भी तैयार नहीं हो सकी हैं, जिनकी कुल कीमत करीब 4.5 लाख करोड़ रुपये है। इनमें 38 प्रतिशत यूनिटें अकेले एनसीआर में हैं, जिनकी वैल्यू 1.31 लाख करोड़ है। लंबित हाउसिंग प्रॉजेक्ट्स पर ऐनारॉक प्रॉपर्टीज की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कई नियामकीय उपायों के बावजूद डिवेलपर प्रॉजेक्ट पूरे करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। इसके पीछे बड़ी वजह कहीं तो फंड डाइवर्जन करने की कोशिश है तो कहीं वास्तव में नकदी की किल्लत है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के टॉप 7 शहरों में 2013 या उसके पहले लॉन्च हुई 5 लाख 61 हजार 100 रेजिडेंशल यूनिटें अब तक पूरी नहीं हो सकी हैं या ग्राहक पजेशन से वंचित हैं। इनकी कुल कीमत 4.51 लाख करोड़ है। इनमें सबसे ज्यादा 2 लाख 10 हजार 200 यूनिटें एनसीआर में हैं। मुंबई मेट्रो रीजन में 1.92 यूनिटें लटकी हैं। इस तरह इन दो शहरों में ही ही करीब 72 प्रतिशत प्रॉजेक्ट लंबित हैं, जिनकी कीमत 3.49 लाख करोड़ है।
ऐनारॉक के चेयरमैन अनुज पुरी ने बताया कि देरी के पीछे सबसे बड़ी वजह डिवेलपर्स में इच्छाशक्ति का अभाव है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर की कोशिश फंड डायवर्ट करने की हो सकती है। हालांकि, कई व्यावहारिक वजहें भी हैं, जिनमें क्रेडिट क्रंच सबसे अहम है। बिल्डर्स दावा कर रहे हैं कि उनके पास प्रॉजेक्ट पूरा करने के लिए फंड नहीं है। कई जगह बायर्स ने भी लंबे इंतजार के बाद बिल्डर्स को पैसा देना बंद कर दिया है। देरी के चलते लागत में भी इजाफा हो रहा है, जिससे क्रेडिट का दबाव और बढ़ जाता है। मंजूरियों में देरी भी एक बड़ी वजह है।
