Sunday, April 20, 2025 |
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औद्योगिक नीति को लेकर प्रयासों की कामयाबी का संकेत

by Business Remedies
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सरकार ने हाल के समय में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन और निर्यात, खासकर मोबाइल हैंडसेट को लेकर कहा है कि यह औद्योगिक नीति को लेकर उसके प्रयासों की कामयाबी का संकेत है। निश्चित तौर पर कुछ सफलताएं मिली हैं जो नजर भी आ रही हैं।
सरकार का लक्ष्य 2025-26 तक 52 से 58 अरब डॉलर का निर्यात करने का है और वर्तमान हालात में यह हासिल होता नजर आता है। कुल 126 अरब डॉलर का उत्पादन लक्ष्य भी उचित प्रतीत होता है। परंतु कारोबारी संगठन इंडियन सेल्युलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) ने इस आशावाद को लेकर सतर्क किया है। अपने हालिया अध्ययनों में उसने अनुमान जताया है कि मोबाइल फोन की घरेलू मांग में कमी आएगी और वह 21 फीसदी सालाना से घटकर 4 फीसदी रह जाएगी। इसके अलावा उसका यह भी कहना है कि निर्यात भी आधिकारिक लक्ष्य का लगभग आधा ही रह जाएगा।
यह किसी भी लिहाज से कमजोर प्रदर्शन नहीं है, लेकिन जब इसे आपूर्ति श्रृंखला के वैश्विक पुनर्संतुलन के बाद मिले अवसरों के विरुद्ध आंका जाता है तो निराशाजनक माना जा सकता है। इतना ही नहीं सरकार के लक्ष्य से चूकने की वजहें उसकी औद्योगिक नीति के डिजाइन में देखी जा सकती हैं। इसमें अधूरे विचारों का इस्तेमाल किया गया जो आमतौर पर भारतीय संदर्भ में नीति निर्माण में लागू करने योग्य नहीं होते। इसके लिए तथा ऐसे अन्य क्षेत्रों मसलन बिजली से चलने वाले वाहन आदि में आयात घटकों तथा अंतिम निर्मित वस्तुओं के लिए शुल्क बढ़ाने का विचार है। ऐसा करके उच्च घरेलू मांग वृद्धि का इस्तेमाल बड़ी विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए किया जाए और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन यानी पीएलआई का इस्तेमाल भी एक आकर्षण के रूप में किया जाए।
नीतियों का यह मिश्रण अफसरशाहों के लिए आकर्षक है, क्योंकि श्रृंखला के हर स्तर पर अनिवार्य तौर पर निर्णय प्रक्रिया में नियंत्रण और विवेकाधिकार में इजाफा होता है, परंतु समग्रता में देखा जाए तो आर्थिक दृष्टि से यह बहुत सुसंगत नहीं लगता।
आईसीईए का अनुमान है कि यह करीब चार से छह फीसदी के बीच है। अगर पीएलआई योजना आयात शुल्क के कारण अलाभकारी हो रही है और घरेलू मांग में भी कमी है तो यह समझना मुश्किल है कि भविष्य में इस क्षेत्र में वृद्धि और निवेश कहां से आएंगे?
सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह इन बातों पर विचार करे, क्योंकि ये पूरी तरह अप्रत्याशित भी नहीं हैं। उसे इनके आधार पर जरूरी बदलाव करने चाहिए, ताकि भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखला में प्रवेश के लिए तैयार हो सके।



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