हिरोशिमा में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने इस वक्तव्य से जिस तरह विश्व समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा कि यूक्रेन में युद्ध दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता है और इसने पूरे विश्व को प्रभावित किया है, उससे उनके बढ़ते कद का भी पता चलता है और इसका भी कि विश्व समुदाय भारत की बात सुन रहा है। इसके पहले यूक्रेन के मामले में उनका यह कथन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब चर्चित हुआ था कि यह युग युद्ध का नहीं है। खास बात यह थी कि उन्होंने यह बात रूसी राष्ट्रपति पुतिन से कही थी।
हिरोशिमा में उन्होंने यूक्रेन संकट को लेकर यह भी कहा कि मैं इसे राजनीतिक या आर्थिक विषय नहीं, बल्कि मानवता और मानवीय मूल्यों का मुद्दा मानता हूं। यह कहना कठिन है कि भारतीय प्रधानमंत्री की इन बातों का तत्काल कोई असर पड़ेगा, लेकिन इतना तो है ही कि इससे रूस-यूक्रेन संघर्ष रोकने में उपयोगी साबित होने वाला माहौल बनाने में आसानी हो सकती है।
पता नहीं ऐसी स्थितियां कब तक बनेंगी, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री ने यह कहकर रूस के साथ चीन को भी निशाने पर लिया कि सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और एक-दूसरे की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। किसी को कोई संशय न रहे, इसलिए उन्होंने यह स्पष्ट करने में भी संकोच नहीं किया कि यथास्थिति बदलने के एकतरफा प्रयासों के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
ऐसी कोई टिप्पणी इसलिए आवश्यक थी कि एक ओर जहां रूस यूक्रेन की संप्रभुता एवं उसकी अखंडता की अनदेखी कर यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन भी अपने पड़ोस में यही काम करने में लगा हुआ है।
चीन की विस्तारवादी हरकतों और सीमा विवाद के मामले में उसके अडय़िल रवैये की चपेट में भारत भी है। भारत के लिए जितना आवश्यक यह है कि वह रूस को नसीहत देने में संकोच न करे, उतना ही यह भी कि चीन को आईना दिखाने का कोई अवसर न गंवाए। यह अच्छी बात है कि भारत यह काम लगातार कर रहा है। शंघाई सहयोग संगठन, क्वाड, जी-20 और जी-7 के मंचों से वह अपनी बात कहने में जिस तरह हिचक नहीं रहा, उससे यही पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक नया भारत आकार ले रहा है।
पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय मामलों में न केवल भारत की अहमियत बढ़ी है, बल्कि प्रमुख देश उससे सहयोग, संपर्क और संवाद के सिलसिले को गति देने में लगे हुए हैं। शायद यही कारण रहा कि आस्ट्रेलिया में क्वाड की बैठक स्थगित हो जाने के बाद भी भारतीय प्रधानमंत्री वहां जा रहे हैं। इसके बाद उन्हें अमेरिका भी जाना है। आज आवश्यक केवल यह नहीं है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी सक्रियता बढ़ाए, बल्कि यह भी है कि सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी आगे बढ़ाता रहे।
अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत की बढ़ती साख
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